देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति इन दिनों राजनीतिक गलियारों में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद यह पद खाली हुआ और अब इस पर नए चेहरे की ताजपोशी के लिए चुनावी प्रक्रिया तेज हो चुकी है। राजधानी दिल्ली में नामांकन की हलचल के बीच, राजस्थान के रेगिस्तानी जिले जैसलमेर से भी एक नाम सुर्खियों में आया – जलालुद्दीन।
जैसलमेर के मंगालिया मोहल्ले में रहने वाले जलालुद्दीन ने इस बार सीधे उपराष्ट्रपति बनने का सपना देखा और 11 अगस्त को 15,000 रुपये की डिपॉजिट राशि जमा कर अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया। हालांकि, उनका यह प्रयास दस्तावेजी खामी के चलते अधूरा रह गया।
दस्तावेजों की वजह से सपना टूटा
चुनाव आयोग के अनुसार, उपराष्ट्रपति चुनाव के नामांकन के लिए ‘निर्वाचन नामावली की प्रमाणित प्रति’ ताज़ा तारीख की होनी आवश्यक है। जांच में पाया गया कि जलालुद्दीन द्वारा जमा किया गया यह दस्तावेज पुराने दिनांक का था, जो नियमों के अनुरूप नहीं था। आयोग ने नियमानुसार उनका नामांकन खारिज कर दिया।
चुनाव लड़ने का पुराना शौक
जलालुद्दीन चुनावी प्रक्रिया से अनजान चेहरा नहीं हैं। वे पहले भी कई स्तरों पर चुनावी किस्मत आजमा चुके हैं। 2009 में अपने गांव आसूतर बांधा से वार्ड पंच का चुनाव लड़ा, फिर 2013 में जैसलमेर विधानसभा चुनाव के लिए और 2014 में लोकसभा चुनाव के लिए भी नामांकन दाखिल किया, हालांकि दोनों बार उन्होंने पर्चा वापस ले लिया। वर्तमान में वे हरदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हैं। छात्र संघ चुनाव में उतरने की योजना भी बनाई थी, लेकिन उम्र सीमा पार होने के कारण यह संभव नहीं हो सका।

7 में से सिर्फ 1 पर्चा मान्य
इस उपराष्ट्रपति चुनाव में कुल 7 उम्मीदवारों ने नामांकन किया था। लेकिन जांच के बाद केवल दिल्ली के जीवन कुमार मित्तल का (दूसरी बार दाखिल किया गया) पर्चा सही पाया गया, जबकि शेष 6 उम्मीदवार – जिनमें जलालुद्दीन भी शामिल हैं – दस्तावेजों की कमी के कारण बाहर हो गए। इन खारिज नामांकनों में तमिलनाडु के डॉ. के. पद्मराजन, दिल्ली के जीवन कुमार मित्तल (पहला नामांकन), आंध्र प्रदेश के नैडुगारी राजशेखर और दिल्ली के डॉ. मंदाती तिरुपति रेड्डी के नाम भी शामिल हैं।
सिर्फ शौक के लिए दाखिल किया पर्चा
जलालुद्दीन का कहना है कि उन्हें पहले से अंदेशा था कि उनका नामांकन स्वीकार नहीं होगा, लेकिन उन्होंने यह कदम केवल अपने ‘शौक’ के लिए उठाया। उनका मानना है कि चुनाव में भाग लेना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, और यह उन्हें एक अलग अनुभव देता है।
भले ही इस बार उपराष्ट्रपति बनने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका, लेकिन उन्होंने अपनी कोशिश से जैसलमेर और राजस्थान का नाम चर्चा में ला दिया है। अब चुनावी मैदान में आगे क्या होता है, यह देखना बाकी है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस जैसे बड़े राजनीतिक दलों ने अभी अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है।

